26 August 2023
13 August 2023
हरियाणे की सभ्यता - नई हरयाणवी रागणी
हरियाणे की सभ्यता - नई हरयाणवी रागणी
हरियाणे की सभ्यता और, संस्कृति कै बट्टा लाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना
नाचण में कोई दोष नहीं, या दुनिया रँग बिरँगी है
नाचो गाओ ख़ुशी मनाओ, कौण कहै बेढ़ंगी है
अर्धनगन क्यूँ हो कै नाचो, के वस्त्र की तंगी है
सारी दुनिया तानें मारै, या असंस्कारी नंगी है
ओछे कपड़े, गन्दा गाणा, यो नँगा नाच नचाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना
बन्द कमरे में लाइव पै करै, के घरक्या आगे कर लेगी
जब स्याणे हो तेरे बालक देखैं, तूँ आप शर्म तै मर लेगी
बदन दिखाकै करै कमाई, के पाप खड्डे नै भर लेगी
रकम आवणी जाणी सै, के छाती ऊपर धर लेगी
दस नौहां तै करो कमाई, पाप कर्म का खाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना
जीजा साली, देवर भाभी, रिश्ते कद्र करण के हों
दोस्त दोस्ती, मित्र प्यारे, जग में प्यार परण के हों
जात पात और ताकत पैसा, अहँकार धरण के हों
दया भाव और शील सुभा, ये खेवा पार तिरण के हों
धर्म छोड़ के अधर्म करते, कुल कै स्याही लाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना
तेरे हाथ में थमी लेखनी या विषधर के समान हो सै
दोमुँही निभ फटी बीच तै, इकी दोधारी ज़ुबान हो सै
काळी जीभ, द्विअर्थी मायने, कवियां की दूकान हो सै
सच की ईंट, धर्म के रोड़े, कविताई की ज्यांन हो सै
आनन्द शाहपुर कविताई में, गन्दी कार कमाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना
रचियता : आनन्द कुमार आशोधिया कॉपीराइट ©2023-24