30 June 2025

किसा रँग बदल्या संसार नै - नई हरयाणवी रागणी

 


किसा रँग बदल्या संसार नै  - नई हरयाणवी रागणी

तर्ज : श्री बाजे बगत जी की मशहूर रागनी “मत मरवावै ब्याही नार नै”

अरै रै किसा रंग बदल्या संसार नै, सनसार नै, मेरै नहीं रै समझ में आया


बेरोज़गार निठल्ला युवा, गळी गळी में डोल रहया

मंहगाई भी चरम सीम पै, ना क्याहे का मोल रहया

असली नकली तुलैं साथ में, ना क्याहे का तोल रहया

असली नकली तुलैं साथ में, ना क्याहे का तोल रहया

अरै रै या के सोची सरकार नै, सरकार नै बेमतलब टैक्स लगाया


खाण पीण का सारा सौदा, मिलावटी और जहरी होग्या 

लालच के दलदल में फंसकै, झाड़ झाड़ का बैरी होग्या

गामा आळी हवा रही ना, माणस माणस शहरी होग्या

गामा आळी हवा रही ना, माणस माणस शहरी होग्या

अरै रै यो प्यार रहया ना परिवार में, परिवार में, बस रहगी धन और माया


कुछ नै धरती बेच देइ भई, कुछ की चढ़गी दामां पै

अपणी धरती गहणै धरकै, इब हक़ मांगैं सैं मामा पै

सारा कुणबा ठाल्ली रामा, अर खेत कटावैं लामा पै

सारा कुणबा ठाल्ली रामा, अर खेत कटावैं लामा पै

अरै रै इस दारु के खुम्मार नै, खुम्मार नै, यो सारा देश डुबाया


सत्कर्मां नै छोड़ छाड़कै, अनीति अधर्म पै तुलगे

बेईमान अन्यायी माणस, स्वार्थ लालच में डुलगे

दया भाव इंसानी जज्बा, शैतानी फितरत में घुळगे

दया भाव इंसानी जज्बा, शैतानी फितरत में घुळगे

अरै रै सब गटक लिया अहंकार नै, अहंकार नै, किसा चौगिरदे नै छाया


मोबाइल और इंटरनेट की, या दुनिया हुई गुलाम रै

रील देखणा रील बणाणा, बस यो हे रहग्या काम रै

ओछे कपड़े गंदा गाणा, सब नाचे जां सुबह शाम रै

ओछे कपड़े गंदा गाणा, सब नाचे जां सुबह शाम रै

अरै रै ये लिप्त हुई व्यभिचार में, व्यभिचार में, इसा घर घर गंद मचाया 


आनन्द शाहपुर छोड़ स्वार्थ, अपणा फ़र्ज़ निम्भाऊँगा

काम, क्रोध, मद लोभ त्याग कै, वानप्रस्थ हो ज्याऊंगा

गुरु पालेराम बसैं हलालपुर, उन्हकी शरण में जाऊंगा

गुरु पालेराम बसैं हलालपुर, उन्हकी शरण में जाऊंगा

अरै रै मैं तो याद करूँ निराकार नै, निराकार नै, जिसनै यो जगत रचाया 

कॉपीराइट©आनन्द कुमार आशोधिया - 2025

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27 June 2025

हरियाणे की सभ्यता - नई हरयाणवी रागणी

 

हरियाणे की सभ्यता - नई हरयाणवी रागणी

हरियाणे की सभ्यता - नई हरयाणवी रागणी

हरियाणे की सभ्यता और, संस्कृति कै बट्टा लाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना

नाचण में कोई दोष नहीं, या दुनिया रँग बिरँगी है
नाचो गाओ ख़ुशी मनाओ, कौण कहै बेढ़ंगी है
अर्धनगन क्यूँ हो कै नाचो, के वस्त्र की तंगी है
सारी दुनिया तानें मारै, या असंस्कारी नंगी है
ओछे कपड़े, गन्दा गाणा, यो नँगा नाच नचाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना

बन्द कमरे में लाइव पै करै, के घरक्या आगे कर लेगी
जब स्याणे हो तेरे बालक देखैं, तूँ आप शर्म तै मर लेगी
बदन दिखाकै करै कमाई, के पाप खड्डे नै भर लेगी
रकम आवणी जाणी सै, के छाती ऊपर धर लेगी
दस नौहां तै करो कमाई, पाप कर्म का खाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना

जीजा साली, देवर भाभी, रिश्ते कद्र करण के हों
दोस्त दोस्ती, मित्र प्यारे, जग में प्यार परण के हों
जात पात और ताकत पैसा, अहँकार धरण के हों
दया भाव और शील सुभा, ये खेवा पार तिरण के हों
धर्म छोड़ के अधर्म करते, कुल कै स्याही लाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना

तेरे हाथ में थमी लेखनी या विषधर के समान हो सै
दोमुँही निभ फटी बीच तै, इकी दोधारी ज़ुबान हो सै
काळी जीभ, द्विअर्थी मायने, कवियां की दूकान हो सै
सच की ईंट, धर्म के रोड़े, कविताई की ज्यांन हो सै
आनन्द शाहपुर कविताई में, गन्दी कार कमाओ ना
लिहाज़ शर्म कुछ बाकि हो तै, गन्दा गाणा गाओ ना

रचियता : आनन्द कुमार आशोधिया कॉपीराइट ©2023-24
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