किसा रँग बदल्या संसार नै - नई हरयाणवी रागणी
तर्ज : श्री बाजे बगत जी की मशहूर रागनी “मत मरवावै ब्याही नार नै”
अरै रै किसा रंग बदल्या संसार नै, सनसार नै, मेरै नहीं रै समझ में आया
बेरोज़गार निठल्ला युवा, गळी गळी में डोल रहया
मंहगाई भी चरम सीम पै, ना क्याहे का मोल रहया
असली नकली तुलैं साथ में, ना क्याहे का तोल रहया
असली नकली तुलैं साथ में, ना क्याहे का तोल रहया
अरै रै या के सोची सरकार नै, सरकार नै बेमतलब टैक्स लगाया
खाण पीण का सारा सौदा, मिलावटी और जहरी होग्या
लालच के दलदल में फंसकै, झाड़ झाड़ का बैरी होग्या
गामा आळी हवा रही ना, माणस माणस शहरी होग्या
गामा आळी हवा रही ना, माणस माणस शहरी होग्या
अरै रै यो प्यार रहया ना परिवार में, परिवार में, बस रहगी धन और माया
कुछ नै धरती बेच देइ भई, कुछ की चढ़गी दामां पै
अपणी धरती गहणै धरकै, इब हक़ मांगैं सैं मामा पै
सारा कुणबा ठाल्ली रामा, अर खेत कटावैं लामा पै
सारा कुणबा ठाल्ली रामा, अर खेत कटावैं लामा पै
अरै रै इस दारु के खुम्मार नै, खुम्मार नै, यो सारा देश डुबाया
सत्कर्मां नै छोड़ छाड़कै, अनीति अधर्म पै तुलगे
बेईमान अन्यायी माणस, स्वार्थ लालच में डुलगे
दया भाव इंसानी जज्बा, शैतानी फितरत में घुळगे
दया भाव इंसानी जज्बा, शैतानी फितरत में घुळगे
अरै रै सब गटक लिया अहंकार नै, अहंकार नै, किसा चौगिरदे नै छाया
मोबाइल और इंटरनेट की, या दुनिया हुई गुलाम रै
रील देखणा रील बणाणा, बस यो हे रहग्या काम रै
ओछे कपड़े गंदा गाणा, सब नाचे जां सुबह शाम रै
ओछे कपड़े गंदा गाणा, सब नाचे जां सुबह शाम रै
अरै रै ये लिप्त हुई व्यभिचार में, व्यभिचार में, इसा घर घर गंद मचाया
आनन्द शाहपुर छोड़ स्वार्थ, अपणा फ़र्ज़ निम्भाऊँगा
काम, क्रोध, मद लोभ त्याग कै, वानप्रस्थ हो ज्याऊंगा
गुरु पालेराम बसैं हलालपुर, उन्हकी शरण में जाऊंगा
गुरु पालेराम बसैं हलालपुर, उन्हकी शरण में जाऊंगा
अरै रै मैं तो याद करूँ निराकार नै, निराकार नै, जिसनै यो जगत रचाया
कॉपीराइट©आनन्द कुमार आशोधिया - 2025
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