बेईमानी और लालच
सोने की चिड़िया कहलावे पर, हिन्द कैसे भरे उडारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
तूँ सूं
खा के आया था कि प्रजा की सेवा करूंगा
अपने हितों से बढ़कर मैं, जनता के हित करूँगा
माँ भारती के चरणों में नित अपना शीश धरूंगा
देश की खातिर जीऊंगा और देश पे ही मरूंगा
ले के शपथ, भूल
गया इब तूँ, हो
गया भृष्टाचारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
तूँ रक्षक बन के भक्षक हो गया, क्यों वर्दी पे दाग लगावे सै
जो भी आज्या तेरी शरण में, तूँ उस ते ए रिश्वत खावे सै
हराम का
पैसा लूट लूट के, तूँ घर में अन्न धन ल्यावे सै
पाप की कमाई खिला खिला क्यूँ, घर क्यां के पाप चढ़ावे सै
हराम का खा सूत बने हरामी, तेरे
चाले कर्म अगाड़ी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
लगी नौकरी सरकारी तेरी, तूँ बाबू बन गया दफ्तर में
दिन भर टाइम पास करे जा, सब घूमे जा तेरे चक्कर में
एक भी फाइल पास करे ना, कौन खड़ा हो तेरी टक्कर में
दो पैसे में तूँ ज़मीर बेच दे, कदे चाय पानी कदे शक़्कर में
तेरी गाडी भरी रिश्वत की रित जा, जब घर में बड़े बिमारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
सफ़ेद और सूती के बाणे ते, ढाप लिया तने तन और मन
झूठ कपट और छल करके तने ठग लिया देश का एक एक जन
जन कल्याण और विकास करूँगा, सीख लिया तने झूठा फन
जनता का पैसा लूट लूट के, कोठा में भर लिया धन ही धन
पैसों का अम्बार लगा लिया पर तेरी ज़िंदगी होगी खारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
किस के दोष लगावे आनन्द, भृष्ट जगत यो सारा है
नेता, बाबू
और पुलिसिया इसी समाज
से आ रहा है
नैतिक पतन चरम पे हो गया, बस अपना ए आपा चाह रहा है
संस्कृति भी डूब गई इब नंगापन ही छा रहा है
मैं, मैं,
मैं, मैं, मेरा, मेरा, स्वार्थ की चली दुधारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश के लगी बिमारी
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2019-20
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