किस्सा अधराजण - रागनी 15
किरशन कुँवरी मेवाड़ी का, ड्योळा ल्यो स्वीकार पिया
रजपूतां में धूम माचज्या, होज्या जय जयकार पिया
नवयौवन भरपूर किरषणा, सै भीमसिँह की जाई
महाराणा नै बख्त बिच्यारा, करी मारवाड़ सगाई
मारवाड़ का राजा मरग्या, ना ब्याही ना अपणाई
जयपुर ड्योळा भेजकै राणा, करणा चाहवै बिदाई
सोळह साल की कुँवारी कन्या, करल्यो अंगीकार पिया
बणके जमाई मेवाड़ों का, थारी दुगणी ताकत हो ज्यागी
मारवाड़ के मानसिँह के, जी नै आफत हो ज्यागी
जयपुर सँग मेवाड़ उदयपुर, एक न्यारी स्यास्त हो ज्यागी
मानसिँह का मान मारकै, थारी ऊँची रयासत हो ज्यागी
मारवाड़ जीतण का सपना, करल्यो नै साकार पिया
जोधपूर महाराज मानसिँह, किरषणा पै नजर गड़ा रहया सै
सेना का दम्भ दिखा दिखा कै, बेमतलब बात बढ़ा रहया सै
चित्तौड़गढ़ किले के ऊपर, पिण्डारी फौज चढ़ा रहया सै
लड़की दे ना हत्या कर उकी, बेहूदी शर्त अड़ा रहया सै
राज, धरा और औरत की इज्जत, वो के जाणै बदकार पिया
ड्योले ऊपर हमला करकै, उनै जयपुर पै हमला बोल दिया
कुँवराणी का ड्योळा रोककै, उनै जहर कुफ़्र का तोल दिया
पहला हमला खुद करकै उनै, जँग का रस्ता खोल दिया
आनन्द शाहपुर नै कथना में, ज्ञान का सागर घोल दिया
मेरी बात पै अमल करो करूँ, हाथ जोड़ दरकार पिया
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22
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