19 August 2022

किस्सा अधराजण - रागनी 19 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 19 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 19 

वृतांत : रसकपूर विलाप करती हुई कैद में अपनी सखी व दासी सुम्मन से अपने दुःख के बारे में ब्यान करते हुए।

दुःख की घड़ी, आण पड़ी, मेरे दुःख का ना परवार
बाहण इसी बिफ़त पड़ी

अपणे भाग पै, मैं बड़ी इतराई
राजा के संग, हुया ब्याह सगाई
रिपट पड़ी, रिपट पड़ी, कल्लर कोरे या गार
मेरे इसी निकट पड़ी

आधे राज की, मैं मालिक बणगी
चारों खूट में, धजा मेरी तणगी
धन की झड़ी, धन की झड़ी, इसे लाग रहे अम्बार
तख़्त में शूल गड़ी

दिल का प्यारा, आँख मीचग्या
मेरे सिर पर तै, हाथ खींचग्या
खड़ी ए पड़ी, खड़ी ए पड़ी, बिन बालम दिलदार
गर्व से रिक्त पड़ी

आनन्द शाहपुर, जाणे हे सारी
घुँण की तरिया, लगी हे बिमारी
ढह हे पड़ी, ढह हे पड़ी, ना कोए ताबेदार
मैं तो मूर्छित पड़ी

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2022-23

Note : Content on this blog is copyright. Whole, partial or any part of this blog may not be used, acted, enacted, reproduced or recreated in any form without written permission from the owner (Anand Kumar Ashodhiya Email : ashodhiya68@gmail.com Mobile No.9963493474). Thanks in advance.

0 Please Share a Your Opinion.: