किस्सा भगत पूरणमल - रागनी 6
वृत्तांत : सुंदरा दे की अर्ज गुरु गोरखनाथ से
तर्ज शुद्ध देसी
गुरु गोरख मैं तेरी शरण में, कहया मानल्यो मेरा ।
मेरी ईच्छा पूरी होज्या तै आबाद रहो थारा डेरा ।।
मैं सतमासी, निरणाबासी, पूरणमासी आज सै
ब्राह्मण न्यौतु, व्रत करूँ, धर्म पुन्न का काज सै
सारा डेरा, आवै तेरा, भोजन मेरे घर आज सै
सारे बाबा, ल्यावै छाबा, भिक्षा खातिर नाज सै
मैं ब्रह्मकुमारी, अर्ज लगारही, चढ़ता आवै सवेरा ।।
मेरी ईच्छा पूरी होज्या तै आबाद रहो थारा डेरा | |
जितने साधु, सारे न्यौतूं, त्यार धरे हैं सत पकवान
कल की बरती, भक्ति करती, मेरा रखल्यो आदर मान
गाणा बजाणा, न्हाणा खाणा, और साथ में हो जलपान
सूती ताणा, भगवाँ बाणा, सबतै बाँटूँ, एक एक थान
व्रत मैं खोलूँ, खुशी में डोलूं, देखकै उसका चेहरा ।।
मेरी ईच्छा पूरी होज्या तै आबाद रहो थारा डेरा ||
करल्यो तावळ, मीठे चावळ, ठण्डी होती थाळी
गरम मसाले, सारे डाले, लाल मिर्च और काळी
नमकीन पापड़, बढिया सापड़, दही आगरे आळी
घी-बूरा और मोतीचूरा, लाडुवाँ की अदा निराळी
जल्दी चालो, भोजन खाल्यो, चिन्ता में जी मेरा ।।
मेरी ईच्छा पूरी होज्या तै आबाद रहो थारा डेरा ||
नौकर चाकर, दास और दासी सारे सेवा में तैयार
पैर पकड़ती, अर्ज मै करती, सेवा में खड़ी ताबेदार
बारम्बार, करूँ गुहार, मेरी सुणल्यो अर्ज पुकार
मैं राधा वो कान्हा सादा, दर्शन दे दो कृष्ण मुरार
आनन्द शाहपूर वाले नै किसा रुप का जादू फेरा ।।
मेरी ईच्छा पूरी होज्या तै आबाद रहो थारा डेरा ।।
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21
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