10 August 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 14 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 14 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 14

वृत्तांत : रसकपूर के राजमहल आगमन पर स्थिति
तर्ज : देशी

दरबारां की नाच नचणिया, जयपुर की राणी बणगी
रजपूतां में शोर माचग्या, या कोड कहाणी बणगी

सिर बाँध पागड़ी ले हाथ मे तेगा, रजपूतों से भरग्या चौक
कौण ठीक और कौण गलत, हुई आपस के म्ह नोंकझोंक
कुछ दबे स्वर में चर्चा कर रहे, कुछ स्याहमी आगे सीना ठोंक
कुछ राजा नै गलत बतावैं, कुछ बातों का ला रहे छोंक
कुछ मूँछा कै ऐंठा दे रहे , कुछ की भौंह छोह तणगी

जगतसिंह राजा का ब्याह एक, नचणी गैल्या होग्या
रजपूतों की आब उतरगी, म्हारा शौर्य पड़के सोग्या
इश्क जाळ में फँसके राजा, बीज बिघ्न का बोग्या
जयपुर राजघराने की यो, शान पे धब्बा होग्या
सूर्य वँश के उज्ज्वल मुख पे, बेमाता काळा खिणगी

सारे ठाकुर ताल ठोंक कै, राजा की करै खिलाफत
गुलाम रियासत के रजवाड़े, करण लागग्ये स्यास्त
मंत्री परिषद सोचण लागी, इब क्यूँकर टाळे आफत
जै प्रजा में विद्रोह होग्या, छिन्न भिन्न हुवै रियासत
वफ़ादार और विद्रोहियों की, आपस के म्हा ठणगी

इक्कीस राणी कठ्ठी हो कै, सलाह मशवरा करण लगी
इसके पन्जे लागण दे ना, सब एक हुँकारा भरण लगी
ठा ठा अपणी टूम ठेकरी, गुप्त जगह पे धरण लगी
दासी बाँदी गीत गावती, शुभ मंगळ त्यारी करण लगी
कहै आनन्द शाहपुर, इस छलणी में, ढोरा सूळसी छणगी
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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