सातवाँ फेरा
सातवाँ फेरा लेते ही मेरा, छूट गया घर देई धाम
मात पिता संग बन्धु छुट्टे, छूट गया खुद का ही नाम
निज का गौत्र त्याग सजन का, नाम गौत अपणाया
अपणी हस्ती मिटा सजन मैं, बणगी तेरी छाया
जित भी रखे कदम सजन मनै, अपणा शीश निवाया
मात-पिता गए छूट सजन मनै, तेरा सहारा पाया
मेरे यकीन की धज्जी उड़गी, मनै पी लिया दर्दे जाम
मंगलसूत्र पहर पिया मन्ने, तज दिया कुटुंब क़बीला।
करकै शादी मेरी गैल में, तूँ बणग्या प्यार वसीला।।
दो दिन भीतर सूख गया फेर, तेरे प्यार का किल्ला
मार मार कै नील गेर दिए, कितै लाल कितै लीला
पैसे गाड़ी मांग मांग कै, तार लिया मेरा चाम
न्यू सोचूँ थी एक छुट्या तै, दूजा कुणबा मिलग्या
यो जजमा भी थोड़े दिन में, पत्ते की ज्यूँ हिलग्या
सुण सुण ताने सास ससुर के, मेरा काळजा छिलग्या
पाँच लाख और एक गाडी में, सबका चेहरा खिलग्या
दहेज देण में सब कुछ बिकग्या, घर भी होया नीलाम
धन के लोभी कापुरुषों की, दुनिया मे होगी भरमार
घर में ढावें जुल्म बीर पे , बाहर बीर के पहरेदार
बिना रीढ़ के ढ़ोंगी माणस, औरत पे करैं अत्याचार
कुछ छूटें कुछ जळ कै मरज्या, बेबस दुखिया और लाचार
कहै आनन्द शाहपुर डूब कै मरज्या, खा कै धन हराम
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22
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