बात पते की
हरियाणे की सभ्यता पे या काली स्याही फिरगी।
संस्कृति भी घटती घटती तळे जमीं पे गिरगी।
फिल्टर पाड़णिया भाई घणे हरियाणे में होग्ये
पाय्या पीतल तारणीया भी, गली गली में होग्ये
जवान उम्र में पी पी दारू चिरनिद्रा में सोग्ये
कुछ भाई तो नशे पते में बीज बिघ्न का बोग्ये
सही गलत का ख्याल रहया ना कति आत्मा मरगी
लाड़ प्यार तै बात करणीया थोड़े ए माणस रहरे सै
झूठी शान का ढ़ोंग मचा के आपस के महँ फहरे सै
कुछ सुल्फे का अंटा ला के जय बाबा की कहरे सै
भरी जवानी माटी कर दी, बुर्ज किले से ढहरे सै
गलियां के महँ लोट पोट हो, न्यु दुनिया निस्तरगी।
लगी अंगहाई, छोड़ पढ़ाई, आज माँ बापा कै खर सै
जिसके पूत निक्कमे लिकड़े, समझनिया की मर सै
कदे हो ज़्या पूत नपूत पिता ने यो भी तो एक डर सै
किसते कहवे दर्द हिया का, अपणा ए सिक्का जर सै
अपणी इज्जत खातर माता भीतर ए भीतर डरगी।
देख बीराणी बहु और बेटी ये लाड्डू जानू बोल्ले सै
बहु पटोला भाभी रँगीली संग भांग धतूरा तोल्ले सै
जात पात की बणा कविता आपस मे विष घोल्ले सै
बेरुजगार निठल्ले भ्रमित इब गली गली में डोल्ले सै
निर्लज्ज कामी कापुरुषों तै या औरत जाति घिरगी।।
अपणा फट्टे के ला के फेर खूड़ बीराणी चरण लगे
सब तरिया बर्बादी कर फेर चोरी जारी करण लगे
झूठा नाम कमावण खातिर गन्दे गाणे करण लगे
सब कर्मा में असफल हो के धरती गहने धरण लगे
कहै आनन्द शाहपुर बात पते की, न्यू मेरे भी जरगी।।
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22
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