किस्सा भगत पूरणमल - रागनी 1
तर्ज : मेरा घरा जाण नै जी कर रहया सै
कौण कुएँ में करहावै सै, किसनै पकड़या डोल
माणस सै के भूत भूतणी, कुछ तो मुख से बोल
हम सन्यासी, रमते जोगी, गाम गाम में फिरते
राह का जाणा, माँग के खाणा, ना ज्यादा लालच करते
कभी यहाँ और कभी वहाँ, या सारी दुनिया गोल
माणस सै के भूत भूतणी, कुछ तो मुख से बोल
मैं एक बिचारा, दुःख का मारया, पड़या कुएँ में रोउँ सूँ
रात और दिन, मुश्किल जीवन, दिन जिंदगी के खोउँ सूँ
टोहूँ सूँ मैं उस ईश्वर नै, जो दे फंद बिफता के खोल
माणस सै के भूत भूतणी, कुछ तो मुख से बोल
ईश्वर भक्ति सच्ची शक्ति, ना और किसे तै डरते
गुरु की प्यास बुझावण खातिर, डोल कुँएँ तै भरते
लड़ते नहीं किसी बन्दे से यो, सच्चे गुरु का कौल
माणस सै के भूत भूतणी, कुछ तो मुख से बोल
आनन्दसिंह कहै मनै बचाल्यो, शाहपुर मेरा गाम
बालअवस्था गुरु मिल्या ना, जिन्दगी पड़ी तमाम
राम नाम का भजन करूँ, ये बाजै ढपड़े ढोल
माणस सै के भूत भूतणी, कुछ तो मुख से बोल
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21
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