किस्सा अधराजण - रागनी 13
वृत्तांत : कैद में रसकपूर की वार्ता शूरदेव किलेदार से
तर्ज : देशी
हो शूरदेव किलेदार तूं दादा मैं पोती ।
मतना बुझै बात आत्मा रोती ।।
मैं पतिव्रता नार, अडिग रही सत पै
कदे आवण दी ना आँच राज के पत पै
अधराजण का अभमान, चढया ना मत पै
सदा रखी आन और बान, निगाह रही गत पै
करया नहीं कोए खोट, लाग रही चोट, सजा मैं ढोती।
मनैं पूजे शिवजी राम, कन्हैया काळा
मैं पढ़ती रही नमाज, करया ना टाळा
ना कदे हारी अपणे, दीन धर्म का पाळा
मैं तै रटती रही सदा, सजन की माळा
मैं तै मूधी पड़ पड़, पैड़ सजन की टोहती।
फतेकंवर राणी नै लूट लई छळ कै
गहरी खेली चाल सारियाँ ने रळ के
उनै भरे सजन के कान मेरे तै जळ कै
वे तै फेर गई तलवार दूधारी गळ पै
रही लाग, विरह की आग, ना रात दिन सोती।
मैं फिरूँ टोहुँवती राम, त्याग देइ बण मै
लेई फेर नजर की मेहर, सजन नै छण मै
मनैं बसा लिए भगवान, देह कण कण मै
मनै छोड़ डिगरग्या आनन्द एकला रण मै
मैं रही लाग, छुडावण दाग, मैल बिन धोती।
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21
Note : Content on this blog is copyright. Whole, partial or any part of this blog may not be used, acted, enacted, reproduced or recreated in any form without written permission from the owner (Anand Kumar Ashodhiya Email : ashodhiya68@gmail.com Mobile No.9963493474). Thanks in advance.
0 Please Share a Your Opinion.: