किस्सा भगत पूरणमल - रागनी 2
वृत्तांत : भगत पूरणमल की सुंदरा दे के द्वार पे अलख
तर्ज : ले के पहला पहला प्यार।
करता विनती बारम्बार, जाती क्यूँ ना भिक्षा डार ।
साधु कद का, खड़या सै, तेरी इंतजार में ।।
गुरु गोरख मेरे धूणा लाते, कानकटे बाबा कहलाते।
जाते हर नगर और गाम, भिक्षा ल्याणा म्हारा काम।
कितै मिलज्या, कितै पाउँ, कोरी दुत्कार मैं ।।
करता विनती बारम्बार
दिल अपणे नै न्यू समझाउँ, मिलज्या जो भिक्षा तै डेरे नै जाउँ
गाउँ उस ईश्वर का गान, जिसकी बजै डमरु की तान ।
शिवजी भोला, जो नाचै, हो जग प्रलय संसार में ।।
करता विनती बारम्बार
भैरों बाबा भला करैगा, दुख पीड़ा तेरी सारी हरैगा।
करैगा तेरा बेड़ा पार, यो सै मायावी संसार,
कड़ तक, धंसी पड़ी सै, तूं दुख की गार में ।।
करता विनती बारम्बार
क्यूँ ना खाट तै तलै पाँह धरती, ज्यादा निद्रा मौत को बरती,
करती फिरै सेहत का नाश, एक दिन रुकती सबकी साँस,
जम के दूत, बिठालें, फेर अपणी कार में ।।
करता विनती बारम्बार
गुरूजनों को कैसे पाउँ, उनके जैसी कविता बणाउँ।
आउँ ना मैं इब दोबारा, तेरा खड़या महल चौबारा ।
रमते जोगी, छिक ज्यांगे, आज पाणी की धार में ।।
करता विनती बारम्बार
सोनीपत जिला, शाहपुर डेरा, जित आनन्द का रैन बसेरा ।
फेरा लगै आगले साल, भिक्षा घाल चाहे मत घाल ।
पाप अर पुन्न का, न्याय होता, उस सच्चे दरबार में ।।
करता विनती बारम्बार
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21
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