07 September 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 15 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

 किस्सा अधराजण - रागनी 15 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 15

किरशन कुँवरी मेवाड़ी का, ड्योळा ल्यो स्वीकार पिया
रजपूतां में धूम माचज्या, होज्या जय जयकार पिया

नवयौवन भरपूर किरषणा, सै भीमसिँह की जाई
महाराणा नै बख्त बिच्यारा, करी मारवाड़ सगाई
मारवाड़ का राजा मरग्या, ना ब्याही ना अपणाई
जयपुर ड्योळा भेजकै राणा, करणा चाहवै बिदाई
सोळह साल की कुँवारी कन्या, करल्यो अंगीकार पिया

बणके जमाई मेवाड़ों का, थारी दुगणी ताकत हो ज्यागी
मारवाड़ के मानसिँह के, जी नै आफत हो ज्यागी
जयपुर सँग मेवाड़ उदयपुर, एक न्यारी स्यास्त हो ज्यागी
मानसिँह का मान मारकै, थारी ऊँची रयासत हो ज्यागी
मारवाड़ जीतण का सपना, करल्यो नै साकार पिया

जोधपूर महाराज मानसिँह, किरषणा पै नजर गड़ा रहया सै
सेना का दम्भ दिखा दिखा कै, बेमतलब बात बढ़ा रहया सै
चित्तौड़गढ़ किले के ऊपर, पिण्डारी फौज चढ़ा रहया सै
लड़की दे ना हत्या कर उकी, बेहूदी शर्त अड़ा रहया सै
राज, धरा और औरत की इज्जत, वो के जाणै बदकार पिया

ड्योले ऊपर हमला करकै, उनै जयपुर पै हमला बोल दिया
कुँवराणी का ड्योळा रोककै, उनै जहर कुफ़्र का तोल दिया
पहला हमला खुद करकै उनै, जँग का रस्ता खोल दिया
आनन्द शाहपुर नै कथना में, ज्ञान का सागर घोल दिया
मेरी बात पै अमल करो करूँ, हाथ जोड़ दरकार पिया

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22

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03 September 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 17 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 17 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 17

वृत्तांत : किले में कैद रसकपूर किलेदार शूरदेव  से याचना करती है कि एक बार उसे किले से बाहर जाने दे ताकि वह अपने प्राण प्यारे महाराज के दर्शन कर सके। वह वायदा करती है कि वह गुप्त रूप से भेष बदलकर जाएगी और महाराज के दर्शन कर के तुरन्त वापस आ जाएगी। वापस आने के बाद शूरदेव का धन्यवाद अदा करते हुए उस समय राज्य की स्थिति का चित्रण करते हुए।

तर्ज : देशी

ले दादा मैं उल्टी आग्यी, मन्ने अपणा फ़र्ज़ निम्भाया
जुग जग जियो शूरदेव तन्नै, सत्त का बीड़ा ठाया

मैं भेष बदलकै दर दर घूमी, ना साजन दिए दिखाई
सारे शहर में रुक्का पड़ रहया, राजा के गमी छाई
दुख चिन्ता में गात सूखग्या, दुश्मन करैं चढ़ाई
राजकोष कति खाली होग्या, हो रही झोझो माई
दे दे चौथ बावळा होग्या, इब कित तै आवै माया

मुसलमान पिण्डारी डाकू, दुराचारी निर्भय हो रहया सै
जागीरदार किसानां के म्ह, रोष घणा भय हो रहया सै
कोए कहै अन्यायी राजा, नशे गफलत के म्ह सो रहया सै
जयपुर भूप शर्म के मारे, सिर धरती के म्ह गो रहया सै
अफरा तफ़री मची चौगिरदे, इसा प्रजा में भय छाया

दूणी ठाकुर फतेहकंवर संग, मिलके खेल रचाग्या
जगत भूप के कान भरे मेरै, झूठी तोहमन्द लाग्या
रतनसिंह राणी का भाई, उनै मेरा यार बताग्या
राजद्रोह का बणा मुकदमा, वो मेरी कैद कराग्या
कान का कच्चा जगत भूप, मेरी कैद का हुक्म सुणाया

दबया खजाना पुरखों का इब, उसकी टोह पड़ रही सै
बियाबान कितै जंगळ के म्ह, धन माया गड्ड रही सै
ढो ढो अपणी घमण्ड गाँठड़ी, सब दुनिया सिड़ रही सै
छाप कटैया कलाकारां में, एक नई जंग छिड़ रही सै
कहै आनन्द शाहपुर निस्तरगे, ना जाता नाम कमाया

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22

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28 August 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 16 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 16 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 16 

वृत्तांत : हलकारा षडयंत्र वश रसकपूर के खिलाफ जहर उगलता 
जिसे सुनकर महाराज जगतसिंह रसकपूर से क्रोधित होकर 
गुस्से में हलकारे से बातचीत करते हुए।

तर्ज : देशी

मेवे की फळी, वा रस की डळी, हुई जहर घुळी, ना चाखण की रह रही
कोयल सी कूक, हो रही सै मूक, गई फर्ज चूक, ना गावण की रह रही

छह महीने तै, ना चिट्ठी पत्री
वा बणकै बैठगी, राणी छत्री
ना कोए सन्देशा, हुआ अंदेशा, जो हुआ हमेशा, ना चाहवण की रह रही

चोरी चोरी वा दगा कमावै
घर के भीतर यार बसावै
उकै हया नहीँ, उकै दया नहीँ, उनै सहया नहीँ, इब दुख पावण की रह रही

रसकपूर मेरे दिल की प्यारी
दिल पे करगी वार दुधारी
वा देगी दगा, मैं रहग्या ठग्या, दिया सुता जगा, कसर के ठावण की रह रही

बेगैरत मेरे मन तै गिरगी
आनन्द शाहपुर पक्की जरगी
वा ले रही मज़ा, ठा ल्याई क़ज़ा, मैं दयूंगा सजा, बात ना भुलावण की रह रही

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22


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25 August 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 9 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 9 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 9

वृत्तांत : रसकपूर की तरफ से कोई सन्देशा न पाकर महाराज जगतसिंह
 गुस्से में हलकारे से बातचीत करते हुए।
तर्ज : देशी

परवाने लिए बाँच भूप ने धरी एक एक चिट्ठी न्यारी
हलकारे तै बूझण लाग्या कित खुगी दिल की प्यारी

मैं छह महिने तै लड़ूँ लड़ाई वा बण बैठी महाराणी
ब्याहे मर्द की चिन्ता कोन्या के पड़गी बात पुराणी
मेरी आत्मा तड़फे उस बिन वा के जाणे चोट बिराणी
ना कोए चिट्ठी ना कोए पत्री मन्ने पड़गी याद कराणी
शरीर एकला लड़ रहया जंग में एक जंग मन मे जारी

वा रँगमहलां में ऐश करै कौण उसके दिल मे बसग्या
मन्ने भुलाके उसके दिल मे किसका दिवा चसग्या
कौण पौनिया विषधर होग्या जो मेरे चन्दण कै घिसग्या
रतनसिंह बण साँप आस्तीन मेरी खुशियां नै डसग्या
मेरे तै दिल भरग्या उसका इब किसते ला ली यारी

नई फौज की भरती करकै वा के करणा चाहवै सै
राजद्रोह में दण्डित हो कै क्यूँ मरणा चाहवै सै
अमीर खान के डेरे पै जा क्यूँ शरणा चाहवै सै
मेरे दुश्मन के पाहया मे वा क्यूँ गिरणा चाहवै सै
अधराजण का ओहदा पा कै वा रीत भूलगी सारी

मानसिंह पै करी चढाई, मन्ने उसकी सलाह मान कै
राजसिंहासन बिठा दई, मन्ने अपणी जगहा जाण कै
दूध के धोखे कपास खा लिया इब पीऊँ शीत छाण कै
आनन्द शाहपुर जंग झो रहया, उकै दया नहीँ डाण कै
कथन समझ मे आ ज्यावै जब कर गावण की त्यारी

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22

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10 August 2021

किस्सा अधराजण - रागनी 14 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 14 - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

किस्सा अधराजण - रागनी 14

वृत्तांत : रसकपूर के राजमहल आगमन पर स्थिति
तर्ज : देशी

दरबारां की नाच नचणिया, जयपुर की राणी बणगी
रजपूतां में शोर माचग्या, या कोड कहाणी बणगी

सिर बाँध पागड़ी ले हाथ मे तेगा, रजपूतों से भरग्या चौक
कौण ठीक और कौण गलत, हुई आपस के म्ह नोंकझोंक
कुछ दबे स्वर में चर्चा कर रहे, कुछ स्याहमी आगे सीना ठोंक
कुछ राजा नै गलत बतावैं, कुछ बातों का ला रहे छोंक
कुछ मूँछा कै ऐंठा दे रहे , कुछ की भौंह छोह तणगी

जगतसिंह राजा का ब्याह एक, नचणी गैल्या होग्या
रजपूतों की आब उतरगी, म्हारा शौर्य पड़के सोग्या
इश्क जाळ में फँसके राजा, बीज बिघ्न का बोग्या
जयपुर राजघराने की यो, शान पे धब्बा होग्या
सूर्य वँश के उज्ज्वल मुख पे, बेमाता काळा खिणगी

सारे ठाकुर ताल ठोंक कै, राजा की करै खिलाफत
गुलाम रियासत के रजवाड़े, करण लागग्ये स्यास्त
मंत्री परिषद सोचण लागी, इब क्यूँकर टाळे आफत
जै प्रजा में विद्रोह होग्या, छिन्न भिन्न हुवै रियासत
वफ़ादार और विद्रोहियों की, आपस के म्हा ठणगी

इक्कीस राणी कठ्ठी हो कै, सलाह मशवरा करण लगी
इसके पन्जे लागण दे ना, सब एक हुँकारा भरण लगी
ठा ठा अपणी टूम ठेकरी, गुप्त जगह पे धरण लगी
दासी बाँदी गीत गावती, शुभ मंगळ त्यारी करण लगी
कहै आनन्द शाहपुर, इस छलणी में, ढोरा सूळसी छणगी
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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03 August 2021

सातवाँ फेरा - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

 

सातवाँ फेरा - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

सातवाँ फेरा

सातवाँ फेरा लेते ही मेरा, छूट गया घर देई धाम
मात पिता संग बन्धु छुट्टे, छूट गया खुद का ही नाम

निज का गौत्र त्याग सजन का, नाम गौत अपणाया
अपणी हस्ती मिटा सजन मैं,  बणगी तेरी छाया
जित भी रखे कदम सजन मनै, अपणा शीश निवाया
मात-पिता गए छूट सजन मनै,  तेरा सहारा पाया
मेरे यकीन की धज्जी उड़गी, मनै पी लिया दर्दे जाम

मंगलसूत्र पहर पिया मन्ने, तज दिया कुटुंब क़बीला।
करकै शादी मेरी गैल में, तूँ बणग्या प्यार वसीला।।
दो दिन भीतर सूख गया फेर, तेरे प्यार का किल्ला
मार मार कै नील गेर दिए, कितै लाल कितै लीला
पैसे गाड़ी मांग मांग कै, तार लिया मेरा चाम

न्यू सोचूँ थी एक छुट्या तै, दूजा कुणबा मिलग्या
यो जजमा भी थोड़े दिन में, पत्ते की ज्यूँ हिलग्या
सुण सुण ताने सास ससुर के, मेरा काळजा छिलग्या
पाँच लाख और एक गाडी में, सबका चेहरा खिलग्या
दहेज देण में सब कुछ बिकग्या, घर भी होया नीलाम

धन के लोभी कापुरुषों की, दुनिया मे होगी भरमार
घर में ढावें जुल्म बीर पे , बाहर बीर  के पहरेदार
बिना रीढ़ के ढ़ोंगी माणस, औरत पे करैं अत्याचार
कुछ छूटें कुछ जळ कै मरज्या, बेबस दुखिया और लाचार
कहै आनन्द शाहपुर डूब कै मरज्या, खा कै धन हराम

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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20 July 2021

तोताचश्मी - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

तोताचश्मी

तोताचश्मी - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी
सुवे की ज्यूँ फिरै चाखता, कदे आवै कदे जा
तेरे प्रेम की चाहना कोन्या, जित मर्जी धक्के खा

इर्दगिर्द मेरे चक्कर काटै तेरै चैन पडै दिन रात नहीं
भँवरे की ज्यूँ मंडरावै जब तक कर ल्यूँ बात नहीं
रात गई और बात गई फेर बदल्या तेरा सुभा

पहले दिन तै जाणु थी तेरी फितरत धोखा देवण की
बीच समन्दर डोबैगा ना आसंग किश्ती खेवण की
तेरी हरदम नीत मटेवण की करै हस्ती मेरी फ़ना

दस दिन भीतर तेरे प्रेम का सारा ए भाँडा फुट गया
मेरे तै जब दिल भरग्या तेरा प्रेम का धागा टूट गया
छूट गया रँग नकली पल में इब दूजा रँग चढ़ा

जाण गई पहचाण गई इब तेरे हाथ ना आवण की
चौगरदे मुँह फिरै मारता दे छोड़ बाण मुँह बावण की
गावण की जै रीस करै तै तूँ आनन्द शाहपुर गा

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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09 July 2021

निशाना - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

निशाना 

निशाना - नया हरयाणवी गाना गीत कविता व राग रागनी

लौंग तेरी का लश्कारा चमकै काना की बाळी
ठहर हूर मत मार निशाना भरकै आँख दुनाळी

जब भी झपकै पलक पाँवड़े, दिल दूणा दूणा धडकै
आँख की कौर नचावै मतन्या, तीर काळजै रड़कै
फडकै सै तेरी भौंह काळी किसी मटकै अदा निराळी

काजल डोरे खींच लिए ये पहलम ए आँख कटीली सैं
गोरे मुख पे नूर बरस रहया, आंख झील सी नीली सैं
पतला सुतवाँ नाक होंठ जणू फळ मेवे की डाळी

उज्ज्वल दन्त पँक्ति धौळी तूँ हँस हँस फूल बखेरै सै
जब भी देखै नजर उठा कै, नशे मन पे बिजळी गेरै सै
छोल काळजा गेरै सै जब कुकै कोयल काळी

लाम्बी पतळी कमल नयनी, घर करगी मेरे दिल मे
फिर आंख्या तै ओझल होगी, हूक उठी इसी दिल मे
बिल में बड़गी नागण काळी आनन्द की देखी भाळी

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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07 July 2021

लोभ की चौसर - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

 लोभ की चौसर

लोभ की चौसर - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

पाप कमाकै धन जोड़या, अर चिण दिया महल चौबारा
मोह के पासे, लोभ की चौसर, पो बारा भई पौ बारा

धरती पे भगवान डॉक्टर, या कहती दुनिया सारी
बेमतलब के टेस्ट कराके, रकम लूट लें भारी
ऑपरेशन और बेड का खर्चा, दवाई गिणा दे न्यारी
वेंटिलेटर पे लाश लिटाके, करैं लूटण की तैयारी
लाश तलक नै बंधक रखलें, जै पाटै ना बिल सारा

शिक्षा का व्यापार बणा दिया, गुरुदेव करें संचालन
खोल प्राइवेट विद्यालय ये, करण लागगे धन अर्जन
वर्दी जूते किताब बेच कै, ये करण लागगे धन संचन
इनके खर्चे देख देख के, त्रस्त हुए सब घर परिजन
पेट काटके टयूशन भरते क्यूँकर करै गुजारा

मिलावटखोर नक्कालों की चौगिरदे नै रेल्लम पेल
जहरी खाणा, जहरी दाणा, जहरीले फूल, पत्ते बेल
जहरीले फळ सब्जी चावळ, असल नकल की घालमेल
दाळ मसाला चीनी नकली, नकली मावा दूध और तेल
इंसानां के दुश्मन  इंसा इब चाल्ले ना कोए चारा

काळे धौले कोट तै बचियो, तिगनी का नाच नचा दे सैं
जिन्दगीभर भी लिकड़ै ना इसे कोल्हू में हाथ फँसा दे सैं
जिनके बस की रचना कोन्या बेमतलब शोर मचा दे सैं
कुछ तो ऊत छाप काट कै, अपणी छाप रचा दे सैं
आनन्द शाहपुर खोट तेरे में क्यूँ औरां पे दोष लगारा

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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28 May 2021

मुफ्तखोरी - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

मुफ्तखोरी

मुफ्तखोरी - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

साधन सम्पन्न इज्जतमन्द भी करण लागगे जारी
मुफ्तखोरी और लालच की लोगो देश के लगी बिमारी

म्हारे कोठी बंगले महल हवेली, गाडी घोड़े खड़े हुए
अन्न धन का म्हारे टोटा कोन्या, देहली ताही अड़े हुए
सरकारी पेन्शन मिलज्या, जणु पैसे पाग्ये पड़े हुए
सरकारी राशन मिलज्या फेर, गेहूँ मिलो चाहे सिड़े हुए
मुफ्त का राशन, मुफ्त की पेन्शन, लालच होग्या भारी

कर फर्जीवाड़ा कागज़ात में, उम्र पुराणी लिखवाली
चालीसवें में साठ लिखाकै, बुजुर्ग पेन्शन बणवाली
हर महीने ल्यु नकद पेन्शन, साथ मे ल्यावै घरवाली
कर कै दस्तख झूठ मूठ के, बैंक की कापी भरवाली
लूट लूट कै घर भर ल्यूँगा, चाहे कोष रीतो सरकारी

मिलीभगत और रिश्वत आगे, सब सिस्टम बेकार हुआ
सरकारी बाबू तै मिलकै, मैं राशन का हकदार हुआ
बी पी एल का कार्ड ले कै, मैं मँगता में शुम्मार हुआ
गरीब आदमी का हक था मैं, ले के राशन पार हुआ
गरीब मरो चाहे भूखा रहो, के मेरे सिर जिम्मेवारी

ऐंठ अकड़ दुगणी राखूं खा, बेईमानी का राशन मैं
घिट्टी के म्ह बुडका भरल्यूं, जो खलल करै मेरे शासन में
गवर्नमेंट ना किसे काम की, देउँ बेशर्मी तै भाषन मैं
पतली गली तै चोरी कर कै, खुड़कण दयूंना बासन मैं
आनन्द शाहपुर चोर मोर पे हुई चोरां की सरदारी

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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26 May 2021

नवनिर्माण - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

नवनिर्माण

नवनिर्माण - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

ठहरया पाणी गाधला होज्या, लाइये जुगत निथारण की
नवनिर्माण करण की सोचो, ना पिछले पै इतरावण की

हरियाणे में लोक कवि और, गीतकार विद्वान हुए
उनकी रचना राग रागनी, हरियाणे का मान हुए
सूर्यकवि श्रीलखमीचन्द, गायन रस की खान हुए
कवि शिरोमणि माँगे राम भी, जनमाणस की ज्यान हुए
वे अजर हुए, वे अमर हुए, तुम सोचो नया बणावण की

गुरु मानसिंह, लखमीचन्द का, हरियाणे में नाम बड़ा
सोनीपत जिला, सेरसा जाटी, हरियाणे में गाम बड़ा
बाजे भगत सिसाने आळा, रचग्या भक्ति ज्ञान बड़ा
सांग भजन और रागणियों में, पाणची का धाम बड़ा
रच नया गीत, मय सँगीत, सृजन कर लय ठावण की

कवि दयाचन्द मायने के म्ह, प्रचार करण आले होगे
सामाजिक समरसता का, प्रसार करण आले होगे
जाट मेहरसिंह गाम बरोणा, छन्द नए धरण आले होगे
समचाणेे में जगननाथ रँग नए भरण आले होगे
कुछ ऊतां की आदत हो रही आज वृथा ही मुँह बावण की

मुंशीराम जाण्डली, धनपत, नुरनन्द वाले व्यास हुए
गन्धर्व कवि नन्द लाल मास्टर नेकीराम जी खास हुए
हरिकेश पटवारी सिंगर, कविताई के दास हुए
पढ़ पढ़ के इन महारथियाँ ने आनन्द शाहपुर पास हुए
पैसे ले कै कार करैं कुछ छाप काट कै गावण की

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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24 May 2021

हरियाणे में व्याप्त कुरीति - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

 

हरियाणे में व्याप्त कुरीति

हरियाणे में व्याप्त कुरीति - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

जो बीत गई वो समो पुराणी इब तेरे हाथ ना आवण की
पहले से ही निश्चित तारीख सबके ऊपर जावण की

मौत आवणी सबनै बेरा पर कौण मरया चाहवै सै
जिसके लागै वो तन जानै हिया ऊदल कै आवै सै
आँख समन्दर होज्या सै फेर सब कोए धीर बंधावै सै
रिश्तेदार अगड़ पड़ोसी कोए आवै कोए जावै सै
माणस घटज्या घर भी लूटज्या, रहज्या कसर खिलावण की

जिस घर में कोए मृत्यु होज्या, वो दुख सबतै मोटा हो
किसे कै माणस, किसे कै अन्न, किसे कै धन का टोटा हो
आंख में आँसू, चढ़े कढ़ाई, चाहे बड्डा हो या छोटा हो
शोक संतप्त परिवार का खाणा श्रीकृष्ण कहै खोटा हो
हरियाणे में व्याप्त कुरीति, या तेहरामी पै खावण की

श्रीकृष्ण नै दुर्योधन गिरफ्तार करण चाल्या था
विश्वरूप देख सुदर्शन कइयां का दिल हाल्या था
दुर्योधन श्रीकृष्ण नै रसोई जिमावन  चाल्या था
श्रीकृष्ण गए नाट खाण ते धर्म का दिया हवाला था
द्वेष क्लेश में जीम रसोई राह सै पाप कमावण की

मृत्यु भोज का खाणा खिलाणा हिन्दू धर्म नहीँ सै
श्रुति स्मृति वेद पुराण में तेरहवां कर्म नहीँ सै
ब्रह्म सूत्र और उपनिषदों में ऐसा मर्म नहीँ सै
आनन्द शाहपुर इस जीवन में थोड़े भ्रम नहीं सै
इस प्रथा के खिलाफ जरूरत पड़गी बिगुल बजावण की

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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20 May 2021

बात पते की - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

 बात पते की

बात पते की - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

हरियाणे की सभ्यता पे या काली स्याही फिरगी।
संस्कृति भी घटती घटती तळे जमीं पे गिरगी।

फिल्टर पाड़णिया भाई घणे हरियाणे में होग्ये
पाय्या पीतल तारणीया भी, गली गली में होग्ये
जवान उम्र में पी पी दारू चिरनिद्रा में सोग्ये
कुछ भाई तो नशे पते में बीज बिघ्न का बोग्ये
सही गलत का ख्याल रहया ना कति आत्मा मरगी

लाड़ प्यार तै बात करणीया थोड़े ए माणस रहरे सै
झूठी शान का ढ़ोंग मचा के आपस के महँ फहरे सै
कुछ सुल्फे का अंटा ला के जय बाबा की कहरे सै
भरी जवानी माटी कर दी, बुर्ज किले से ढहरे सै
गलियां के महँ लोट पोट हो, न्यु दुनिया निस्तरगी।

लगी अंगहाई, छोड़ पढ़ाई, आज माँ बापा कै खर सै
जिसके पूत निक्कमे लिकड़े, समझनिया की मर सै
कदे हो ज़्या पूत नपूत पिता ने यो भी तो एक डर सै
किसते कहवे दर्द हिया का, अपणा ए सिक्का जर सै
अपणी इज्जत खातर माता भीतर ए भीतर डरगी।

देख बीराणी बहु और बेटी ये लाड्डू जानू बोल्ले सै
बहु पटोला भाभी रँगीली संग भांग धतूरा तोल्ले सै
जात पात की बणा कविता आपस मे विष घोल्ले सै
बेरुजगार निठल्ले भ्रमित इब गली गली में डोल्ले सै
निर्लज्ज कामी कापुरुषों तै या औरत जाति घिरगी।।

अपणा फट्टे के ला के फेर खूड़ बीराणी चरण लगे
सब तरिया बर्बादी कर फेर चोरी जारी करण लगे
झूठा नाम कमावण खातिर गन्दे गाणे करण लगे
सब कर्मा में असफल हो के धरती गहने धरण लगे
कहै आनन्द शाहपुर बात पते की, न्यू मेरे भी जरगी।।

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22

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16 May 2021

समझ - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

 समझ

समझ - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

तेरी समझ में आ ज्याउँ, मैं वो सौदा कोन्या।
धुर दिन का शरीफ सूं पर माणस बोदा कोन्या।।

बड़े बूढ़े औऱ बाळक पे मन्ने कदे हाथ ना ठाया
बदमाशा की ऐंठ काढ़ दी, भिड़ते चित्त लगाया
तेरे हाथ मे आ ज्याउँ, तेरा इतना ओहदा कोन्या।।

भाण अर बेटी बहु किसे की, भर के नजर तकी ना
अपणी सोधी में इस मुँह तै कदे, ओछी बुरी बकी ना
दुश्मन का भी भला करया, कदे खड्डा खोदया कोन्या।।

जात पात अश्लील कविता फीम अर लाड्डू लिक्खी ना।
बदमाशी के थोथे किस्से, गन पिस्टल गोली लिक्खी ना।।
पाखण्ड विद्या सिक्खी ना मैं, अनपढ़ मोडडा कोन्या।

नशे पते असले हथियारा की कदे भी होड़ करी ना।
ठरकी और फुकरे यारा की कदे भी मरोड़ करी ना।।
आनन्द शाहपुर नई समझ सै, जहरी पौधा कोन्या।।

©आनन्द कुमार आशोधिया 2021-22
गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22

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12 May 2021

खेतड़ - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

खेतड़

खेतड़ - नया हरयाणवी गाना गीत कविता राग रागनी

मैं खेतड़ तूँ मेम साहब, याहड़े जुगत लगे ना तेरी।
तेरे सिम्पल बाणे नै, छोरे ज्यान काढ़ ली मेरी।।

मैं सरकारी में पढ़ रहया, तेरे कॉलेज का रंग चढ़ रहया।
मेरा रंग भी काला पड़ रहया, तूँ भूरी भक्क सुनेहरी।।

बस तेरे तै प्यार करूँगी, ना कुँए जोहड़ पडूँगी
बिन आई मौत मरुँगी जै बात सुणे ना मेरी।।

म्हारे घर मे छप्पर ढारा, तेरे खड्या महल चौबारा
मैं सोनीपत ते आ रहया, तूँ दिल्ली के रँग ले रही।।

आनन्द तेरी बात सुणुगी , तेरे आँगन बीच रहूँगी।
तेरी गेल्या कष्ट सहूँगी, तूँ सुणले बिनती मेरी।।

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2021-22

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