किस्सा : हीर राँझा। वृतांत : राँझे का विलाप हीर के लिए।
तर्ज : बाजे भगत जी की ख़ास तर्ज "मत मरवावै ब्याही नार नै"
अरै रै, तूं तै, चाल पड़ी, सुसराड़ नै, सुसराड़ नै,
याहड़ै रो रो मरज्या यो पाळी
अरै तेरे बहम में, पागल हो कै, मनै छोड़ा तख्त हजारा रै
न्यू सोचूँ था, तूं मिल ज्यागी, इब तक रहया कुंवारा रै
राँझा राँझा, कहकै लूट लिया, इसा कड़ में चक्कु मारा रै
अरै रै, जब खेत चरण लगै बाड़ नै, हाय बाड़ नै
भला के करले यो हाळी
मीठी बणकै, ज्यान काढ़ ली, इबके कसर कहर में रै
पागल की ज्यूँ, फिरूं भटकता, टिब्बा आळे डहर में रै
क्यूंकर मरूं, कोए जतन बतादे, एकला इस सहर में रै
अरै रै, तुं तै गेर मेरे पै इस झाड़ नै, इस झाड़ नै
चली बण अक्खन घरआळी
या पड़ी कूण में, सिसकै सै, एक ओड़ बांसरी ढारे में
तनै बोलण जोगा, छोड़ा कोन्या, के बोलूं इस बारे मे
बिन मारे तनै, मार दिया, इब कसर बता के मारे में
अरै रै, इब घोंट गळा मेरा गाड़ नै, हाय गाड़ नै
मनै आपै कब्र खुदाली
खरक सहम कै, चुपका होग्या, देख तेरे इस मुर्दे नै
तेरे डांगर भी, ठगे ठगे से, देखैं खडे चुगरदे नै
रोए तै भी कम ना होता, बता क्यूंकर रोऊं दर्दे नै
अरै रै, इस फाळी नै जा काढ़ नै, जा काढ़ नै
छाती में ये कील ठुकाली
आनन्द शाहपुर, की तरिया मैं, मन नै मारके जीऊंगा
गुरु पालेराम, हलालपुरिया के, चरणा के म्ह निऊंगा
तेरी यादा की, बांध गांठड़ी, इन ज़ख्मा नै सीऊंगा
अरै रै, दे भेड़ मेरे इस किवाड़ नै, इस किवाड़ नै
बंद कर दिए साँकळ ताळी
कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया©2021-25
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