07 July 2025

बात पते की - नई हरयाणवी रागणी

बात पते की - नई हरयाणवी रागणी

बात पते की - नई हरयाणवी रागणी 

हरियाणे की सभ्यता पै, या काळी स्याही फिरगी

संस्कृति भी घटती घटती, तळै जमीं पै गिरगी


पाय्या पितळ तारणीया घणे, हरियाणे में होग्ये

फिल्टर पाड़णिया छोरे भी, दाग जिगर के धोग्ये

जवान उम्र में पी पी दारू, चिर निन्द्रा में सोग्ये

कुछ भाई तो नशे पते में, बीज बिघन का बोग्ये

सही गलत का ख्याल रहया ना, कति आत्मा मरगी


हरियाणे में खाट खटोले, बिछया करैं थे नोहरां में 

जेळ के भीतर बाहर बिछाकै, बोर मार रहे छोहरां में 

जब जच्चा का आवै पीळिया, खुशी होवै थी भोरां में 

बन्दूक पीळिये में देज्यां मामा, इब गाते फिरते टोरां में 

बदमाशी और गन कल्चर आज सबके कान कतरगी 


लाड़ प्यार तै बात करणीया, थोड़े ए माणस रहरे सैं

झूठी शान का ढ़ोंग मचा कै, आपस के म्ह फहरे सैं

कुछ सुल्फे का अंटा ला कै, जय बाबा की कहरे सैं

भरी जवानी माटी कर दी, ये बुरज किले से ढहरे सैं

गळियाँ के म्ह लोट पोट हो, न्यु दुनिया निस्तरगी


लगी अंगहाई, छोड़ पढ़ाई, आज माँ बापा के खर सै

जिसके पूत निक्कमे लिकड़ै, समझणिया की मर सै

कदे हो ज़्या पूत नपूत पिता नै, यो भी तो एक डर सै

किसतै कहवै दर्द हिया का, अपणा ए सिक्का जर सै

अपणी इज्जत खातर माता, भीतर ए भीतर डरगी


देख बीराणी बहु और बेटी, ये लाड्डू जानूँ बोल्लैं सैं

बहु पटोला भाभी रँगीली, सँग भाँग धतूरा तोल्लैं सैं

जात पात की बणा कविता, आपस में विष घोळै सैं

बेरुजगार निठल्ले भ्रमित, इब गळी गळी में डोल्लैं सैं

निरलज्ज कामी कापुरुषां तै, या औरत जाति घिरगी


अपणा फट्टे कै ला कै इब, खूड़ बीराणी चरण लगे

सब तरिया बर्बादी कर, बदमाशी का दम भरण लगे

झूठा नाम कमावण खातिर, गन्दे गाणे करण लगे

सब कर्मा में असफल हो कै, धरती गहणै धरण लगे

आनन्द शाहपुर बात पते की, गुरु पालेराम कहै जरगी

कॉपीराइट©गीतकार:आनन्द कुमार आशोधिया©2025 

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