किस्सा हीर राँझा - हीर बेवफा - नई हरयाणवी रागणी
वार्ता:खरक की ताळी वापस करते हुए राँझे की वार्ता बुल्ली से।
तर्ज : रेशमी सलवार कुर्ता जाळी का।
रूस गई मेरी हीर करूँ के ताळी का
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का
वा अक्खन की राणी होगी, मेरै बीज बिघन का बोगी
कित महलाँ में पड़कै सोगी, मनै धरती पर तै खोगी
हाल बुरा हाळी का,
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का
मने न्याम्ड भैंस चराई, मेरै पांहया पड़ी बिवाई
उनै कति लिहाज़ ना आई, मेरै कोन्या गात समाई
करूँ के चुचक आळी का,
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का
कित जाकै पापण मरगी, उनै मेरे बिना भी सरगी
मेरै ज़हरी नागण लड़गी, डस बम्बी के म्ह बड़गी
ज़हर चढ्या काळी का,
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का
श्री पालेराम गुरूजी, बता क्यूँकर पार तिरूँ जी
करणी का दण्ड भरूँ जी, बिन आई मौत मरुँ जी,
करूँ के चाळी का,
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का
कहै आनन्द शाहपुर आळा, ले लाठी काम्बळ काळा
पड़या बेवफा तै पाळा, गई टूट प्रेम की माळा
दोष के माळी का,
इब कौण बणैगा आसरा इस पाळी का 🙂
कॉपीराइट©आनन्द कुमार आशोधिया©2024-25
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