किस्सा हीर राँझा - नई हरयाणवी रागणी
वृतांत: हीर की नणंद “सहती” बाबा रूपी राँझे से
तर्ज: कुएं पै लुगाइयां धौरे
हो उतरता ना ताप बाबा, झोड़ा होया शरीर का
तावळा सा चाल बाबा, झाड़ा लादे पीर का
जिस दिन तै वा ब्याहली आई, खाट के म्ह पड़ी रहै
खाया पिया लागै कोन्या, मुंह की लाली झड़ी रहै
एकटक देखे जा सै, कोळै लागी खड़ी रहै
बेरा ना के सोचे जा सै, चिन्ता के म्ह बड़ी रहै
हो ढळी रहै काया दुख में, रोळा सै तकदीर का
चौबीस घंटे रोए जा सै, म्हारी ज्यान नै खाड़ा होग्या
बुझे तै भी बोलै कोन्या, इसा ज्यान का राड़ा होग्या
रूप हुस्न की अंगारी पै, मेरा भाई लाड़ा होग्या
ना खाए ना उगले बणता, किसा गजब पुवाड़ा होग्या
हो गात सूख कै माड़ा होग्या, उस नई नवेली हीर का
ऊपर तळै साँस होज्या, बेदम हो कै उखड़ज्या
पेट के म्ह गोडे दे ले, सारी काया सुकड़ज्या
माथे के म्ह त्यौड़ी पड़ज्या, सारा गात अकड़ज्या
हाथ पाँव ढीले पड़ज्या, जाड़ी मुट्ठी जकड़ज्या
सांप लिकड़ज्या पीटे का के, फायदा फेर लकीर का
लोचे जा शरीर उसका, नागिण की ज्यूँ तणग्या
राँझा राँझा रटे जा सै, यो के रोळा ठणग्या
म्हारी गाळ में भाईरोया, बदनामी सिर खिणग्या
सोच समझकै छंद धरकै, वो रागणियां नै चिणग्या
आनन्द शाहपुर सेवक बणग्या, उस पालेराम वजीर का 🙂
कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया©2025
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