कन्या रतन लक्ष्मी हो सै, किसे भागवान घर आती है
जिस घर कन्या जन्म लेवती, पिता का भाग बढाती है
लक्ष्मी रुप धी बेटी का हो वा अपने भाग का ल्यावै सै
शील सुभा और दया भाव उका सारे जग नै भावै से
पाँच साल की होते होते वा तै में माँ का हाथ बंटावै सै
जै आज्या घर नान्हा भाई, उके हँस हँस लाड लडावै सै
कर छोटे भाई का लालन पालन मां जैसा फर्ज निभाती है
चिड़िया की ज्यों चुग्गा करती नाममात्र का ख़ावैं सै
सारे घर में फिरैं चहकती ये सबका मन हर्षावैं सै
सब कुणबे नै प्यारी लागैं ये सबके मन नै भावैं सै
भाज भाज कै काम करैं ये तै सबकी टहल बजावैं सै
मीठी मीठी प्यारी बोलै या तै सबका मन बहलाती है
स्याणी हो जब पढण जावै, सदा रहती नीत समाई में
शील सभा बेटी का होता, सदा रहती नीत भलाई में
ये तै बेटा तै भी अव्वल रहती, शिक्षा खेल पढ़ाई में
नौकरी पेशा बिजनस धंधा ये अव्वल रहैं कमाई में
कोए शिक्षा में कोए खेलां में अपणा नाम कमाती है
कन्या धन पराया हो सै, या बड़ी जिम्मेदारी ठावण की
बेदी रचकै ब्याही जा, जब समो आवती ब्याहवण की
कन्यादान कर बेटी सौंपैं, या रीत सै धर्म निम्भावण की
आँख में आँसूं भर भर आवैं, जब आवै घड़ी बिठावण की
यो सुन्ना घर काटण नै आवै, जब बेटी की याद सताती है
मात पिता तज कुटम्ब कबीला, या गृहस्थ धर्म अपणावै सै
पीहर छोड़ सासरै रमज्या, अपणा न्यारा ए घर बसावै सै
सब्र का मुक्का ले मार हिया पै, जब पीहर की याद सतावै सै
अपनी कोख से नव सृजन कर, ये तो सृजनहार कहलावै सै
गुरु पालेराम कहै आनन्द शाहपुर, धी गीत पिता के गाती है
कॉपीराइट©आनन्द कुमार आशोधिया - 2025
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