बेईमानी और लालच - नई हरयाणवी रागनी
सोने की चिड़िया कहलावै पर, हिन्द कैसे भरै उडारी
बेईमानी और लालच की लोगो, देश कै लगी बिमारी
तूँ सूँ खा कै नै आया था, जनता की सेवा करूँगा
सच का साथी सदा रहूँ, ना झूठ का दम भरूँगा
माँ भारती के चरणां में, नित अपणा शीश धरूँगा
देश की खातिर जीऊंगा और, देश के ऊपर मरूँगा
तूँ तै ले कै शपथ, भूलग्या सेवक इब होग्या भृष्टाचारी
तूँ रक्षक बण कै भक्षक होग्या, क्यूँ वर्दी पै दाग लगावै सै
जो भी आज्या तेरी शरण में, तूँ उस तै ए रिश्वत खावै सै
हराम का पैसा लूट लूट कै, तूँ घर में अन्न धन ल्यावै सै
खिला खिलाकै पाप कमाई क्यूँ, घर क्यां कै पाप चढ़ावे सै
हराम का खा सुत बणैं हरामी, घर बणज्या सर्प पिटारी
तेरी लगी नौकरी सरकारी तूँ, बाबू बणग्या दफ्तर में
दिन भर टाइम पास करे जा, सब घूमें जा तेरे चक्कर में
एक भी फाइल पास करै ना, कौण खड़ा हो तेरी टक्कर में
तूँ दो पैसे में ज़मीर बेच दे, कदे चाय पाणी शक़्कर में
तेरी गाडी भरी रिश्वत की रितज्या, सिर पै चढ़ै उधारी
सफ़ेद सूत के बाणे तै तनै, ढक लिया अपणा तन और मन
झूठ कपट बेईमानी तै, ठग लिया देश का एक एक जन
जन कल्याण विकास करूँगा, सीख लिया तनै झूठा फन
प्रजा की जायदाद लूट कै, कोठया में तनै भर लिया धन
पैसों का अम्बार लगा लिया, पर तेरी ज़िंदगी होगी खारी
किसकै दोष लगावै आनन्द, हर कोए रिश्वत खा रहया सै
अफसर नेता बाबू पुलिसिया, यो म्हारे बीच तै जा रहया सै
नैतिक पतन चरम पै होग्या, सब अपणा आपा चाह रहया सै
संस्कृति भी डबो दई इब, नँगापण ही छा रहया सै
अरै मैं, मैं, मैं, मैं, मेरा, मेरा, स्वारथ की चली दुधारी 🙂
कॉपीराइट©आनन्द कुमार आशोधिया©2024-25
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